makhdoom asharf jhangir samnani kichocha sharif
part 2 makhdoom asharf jhangir samnani
kichocha sharif
लेकिन उमूर-ए-सल्तनत में मसरूफ़ियत के बावजूद आप ने फ़रायज़ व वाजिबात सुन्न और नवाफ़िल हत्ता की मुसतहबात तक की अदायगी में भी कभी तसाहुली नहीं बरती। आप का दिल बचपन ही से इश्क़-ए-इलाही व माअरफ़ते हक़ व वलवलह सुलूक और सैर तरीक़ से था। दरवेशों और गिरोह ए सालकीन जो भी आपकी ख़िदमत में हाज़िर होता, आप उसकी बड़ी इज़्ज़त व तवाज़े फ़रमाते और उसे माअरफ़ते सुलूक हासिल फ़रमाते।
सबसे पहले हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने आप को राह ए सुलूक की दी और इस सिलसिले में बराबर आप की रहनुमाई फरमाते रहे फिर हज़रत ख्वाजा ओवैस क़रनी की रूहानियत ने आप को अज़कार ए ओवैसिया की तालीम फ़रमाई। आप उन अज़कार में मशग़ूल रहे।
लेकिन अब आप एक ऐसे मुर्शिद की तड़प और जुस्तजू पैदा हुई जो आप को दर्जा ए कमाल तक पहुंचाए और इल्म ए ज़ाहिर व बातिन दोनों का ताजदार बना दे। आप जितनी जल्दी हो सके तख़्त ओ ताज से दूर होकर मुर्शिद की तलाश में निकल जाना चाहते थे। आप हर समय इस चिंता में लगे रहते अंत में 27 रमज़ान उल मुबारक को शबे क़दर की रात आप हिस्बे मामूल इबादत ए इलाही और ज़िक्र ओ फ़िक्र में मशग़ूल थे कि हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए और
बाज़बाने फ़सीह ( परिष्कृत भाषा) इरशाद फ़रमाया कि "ऐ अशरफ अब तर्क ए हुकूमत और सल्तनत का वक्त आ गया है हुकूमत और सल्तनत छोड़ कर हिन्दुस्तान का रुख करो वहाँ तुम्हारे पीर रौशन ज़मीर हज़रत शेख़ अलाउद्दीन गंज नबात पंडवी तुम्हारे इंतजार में हैं, तुम्हारी रूहानी तकमील उन्हीं से होगी " इसलिए सुबह को आप अपनी वालिदा माजिदा की ख़िदमत में हाज़िर हुए और इस वाक़्या को बयान किया और तर्के सल्तनत का इरादा ज़ाहिर फ़रमाया और सफ़र की इजाज़त चाही आपकी वालिदा माजिदा ने जवाब में फ़रमाया मेरे जद बुज़ुर्गवार हजरत ख्वाजा अहमद यसवी रहमतुल्लाह अलैह की रूहानियत ने मुझे ख़्वाब में बशारत दी थी कि "तुम्हारा फ़रज़न्द अशरफ अता ए इलाही है और उस से एक आलम की गुमराही दूर होगी और ईमान ओ इरफान की रौशनी दुनिया में फैलेगी- अब मैं समझती हूं कि वह वक्त आ गया है, मैं तुम को मुबारकबाद देती हूँ मैं ने तुम्हें ख़ुदा से मांगा था और अब अपने सारे हुक़ूक़ माफ़ करके तुम्हें उस के हवाले करती हूँ जाओ ख़ुदा हाफ़िज़ अलबत्ता मेरी ख़्वाहिश है कि तुम जिस वक्त समनान से निकलो तो पूरे शाहाना वक़ार और शान व शौक़त से निकलो ताकि यह सोच कर मैं अपने दिल को तसकीन देती रहूं कि मेरा बेटा किसी मुल्क को फ़तेह करने जा रहा है । "दूसरे दिन आप ने हुकूमत व सल्तनत अपने छोटे भाई के सिपुर्द की और उन्हे अद्ल व इन्साफ़ और शरीयत की पाबन्दी की ताकीद फ़रमायाई और समनानसे रवाना हो गए।
हज़रत ग़ौसुल आलम समनान से इस इस शान ओ शौकत से रवाना हुए कि दाएं बाएं उल्मा की मुक़द्दस जमाअत , उमरा व वुज़रा आपके पीछे और उनके पीछे बारह हज़ार फ़ौज का लश्कर ए जर्रार और सबसे आख़िर में रन्जीदा दिल
और अश़्कबार आंखों के साथ समनान के मर्द व ज़न का हुजूम था लेकिन चन्द मन्ज़िलों के बाद आप ने कुछ अलविदाई कल्मात कह कर सबको रुख़सत कर दिया। और आगे चल कर एक मन्ज़िल ऐसी भी आई जहाँ उन सारे शाही तकल्लुफ़ात से अलग होकर प्यादह पा हो गए।
दो साल पैदल सफ़र के बाद हूदूद ए बंगाल में पहुँचे। उधर ख़िज़्र अलैहिस्सलाम अगर एक तरफ बराबर आपकी रहनुमाई फरमाते रहे तो दूसरी तरफ बार बार हज़रत शेख़ अलाउलहक़ वालिदैन गंज नबात पंडवी को भी यह खबर देते रहे कि मुल्क समनान का ताजदार सैय्यद अशरफ हुकूमत व सल्तनत और राज्य छोड़कर आपकी ख़िदमत में आरहा है। और जब हज़रत ग़ौस उल आलम पंडवह से क़रीब हो गये तो आपके शेख़ ने फ़रमाया कि मुझे तालिब ए सादिक़ की बू आरही है। और आपके इस्तेक़बाल के लिए पंडवह से बाहर निकल पड़े। यह देखकर आपके असहाब व मुरीदीन और अहले शहरे लोग का एक हुजूम़ भी आपके साथ हो गया। हज़रत ग़ौस उल आलम जब पंडवह पहुंचे शेख़ को शहर के बाहर ही मौजूद पाया। वालहाना अन्दाज़ से भरा तरीक़ा में दौड़कर आगे बढ़े और हज़रत के क़दमों पर गिर पड़े। शेख़ ने आप उठाकर सीने से लगाया और फ़रमाया फ़रज़न्द्र अशरफ, हज़रत ख़िज़्र अलैहिस्सलाम ने तुम्हारे आने की ख़बर मुझे सत्तर बार दी है और मेरी रूहानियत हर मंजिल पर तुम्हारे साथ थी। उस के बाद आप को ख़ानक़ाह में लाये और मुरीद फ़रमाया और उसी वक्त ख़िरकह ए ख़िलाफ़त और कुछ तबर्रुकात अता फ़रमाये।
हज़रत ग़ौसुल आलम मुसलसल छह साल ख़िदमत ए शेख़ में रहे और तालीम ए सुलूक व माअरफ़त व रियाज़त व मुजाहिदात में मसरूफ़ और राह ए सुलूक
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